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कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या तालाबंदी अगले हफ्ते हट जाएगी?

यह सवाल ही ग़लत है। पूछना चाहिए कि इन तीन हफ्तों में हमने अपनी तैयारी कितनी ठोस कर ली है कि तालाबंदी हटा सकते हैं?

इस सवाल की नज़र से देखेंगे तो तालाबंदी हटाने की कोई परिस्थिति नज़र नहीं आती है।

तालाबंदी इसलिए की जाती है ताकि संक्रमण के फैलने की रफ्तार कम कर सकें और उसका लाभ उठा कर अपनी मेडिकल सुविधाओं को तैयार कर लें।

फक्त 'मरकज'वालेच नियम मोडत नाहीत तर मारकजवाल्यांवर कोरोनाच खापर फोडणारे ही कमी नाही - शिवसेना

आप इस योग्य हैं कि इस सवाल का ईमानदार जवाब ढूंढ सकते हैं। संक्रमण के जो अनुमान हैं उसके हिसाब से हमारे पास पी पी आई और वेंटिलेटर बहुत ज़्यादा कम है। हो सकता है इसकी ज़रूरत न पड़े लेकिन तालाबंदी का आधार ही तो यही है कि ऐसी स्थिति आ सकती है।



अन्य देशों की तरह भारत ने भी फरवरी, मार्च का बहुमूल्य समय गंवाया। लेकिन तालाबंदी के बाद भी मेडिकल तैयारियों में कोई बहुत तेज़ी आ गई हो ऐसा भी नहीं है।

हमारी तैयारी डाक्टरों को सुरक्षा उपकरण मुहैया कराने में भी औसत नज़र आ रही है औऱ अस्पताल के आस पास प्रोटोकॉल के फोलो करने में भी। हम इतना भी टेस्ट नहीं कर रहे कि एक अस्पताल में जो भी आएगा उसकी जांच होगी। कई जगहों पर सुनने को मिल रहा है कि मरीज़ आया कोई और बीमारी लेकर लेकिन बाद में पता चला कि संक्रमण था। ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। एम्स के न्यूरो वार्ड में 30 डाक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी को क्वारिंटिन किया गया है। महाराजा अग्रसेन और गंगाराम अस्पताल से भी ऐसी खबरें आई हैं। तीनों जगह एक तरह की चूक हुई है। मतलब है कि अस्पतालों में ही प्रोटोकॉल पूरी तरह से स्थापित नहीं हुआ है।

यह क्यों हो रहा है?



इसलिए हो रहा है क्योंकि अस्पताल में ही आने वाले सभी मरीज़ों के टेस्ट की व्यवस्था नहीं है। अगर होती तो भर्ती से पहले टेस्ट होता और अस्पताल के भीतर संक्रमण नहीं फैलता। ऐसी खबरें बता रही हैं कि हम अस्पताल में ही संपूर्ण तालाबंदी लागू नहीं कर पा रहे हैं।

ऐसी घटनाएं बता रही हैं कि हमने तालाबंदी के तीन हफ्तों का पूरी तरह से इस्तमाल नहीं किया है। इसलिए मेरी राय में तालाबंदी जारी रखने को लेकर गोदी मीडिया के प्रोपेगैंडा की ज़रूरत नहीं है। लोग समझ रहे हैं और सहयोग कर रहे हैं। तभी सरकार को चाहिए कि वह जनता के सामने सही बात रखे। बताए कि तालाबंदी के दौरान उसकी क्या तैयारी हुई है, लक्ष्य क्या था और हुआ कितना। सरकार यह भी बताए कि वह संक्रमण के फैलने के किस अनुमान पर भरोसा करती है? क्योंकि कई तरह के अनुमान आ रहे हैं। सरकार जिस भी अनुमान पर भरोसा करती है, उसके हिसाब से 3 हफ्तों में क्या तैयारी हुई और अब जो विस्तार होगा उस दौरान किस लक्ष्य को हासिल किया जाएगा।

समस्या यह है कि बुनियादी सवाल पूछे जाने बंद हो गए हैं। आनलाइन प्रेस कांफ्रेंस हो रही है। सवाल पूछने का मौका ही नहीं आ रहा है।



तालाबंदी में हमारी तैयारी पूरी हो चुकी होती तो सुप्रीम कोर्ट को नहीं कहना पड़ता कि डाक्टरों को सारे उपकरण दिए जाएं। इस मामले में उपकरण मिलने लगे हैं लेकिन हर जगह नहीं मिले हैं। तो किस भरोसे कोई सरकार तालाबंदी हटा देगी। सरकार तैयारियों और अनुमानों का पूरा डेटा दे।

पंजाब से खबर है कि छह ज़िले में वेंटिलेटर नहीं है। बिहार के 18 ज़िलों में वेंटिलेटर नहीं है। क्या ये हमारी तैयारी है? ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं। टेस्ट के मामले में भारत ने सुधार तो किया है लेकिन वह संख्या सुनने में 1 लाख से बड़ी लग रही है मगर आबादी के अनुपात में कुछ भी नहीं है। जब तक यह चुनौती नहीं आई थी हम मीडिया के प्रचार के दम पर खुद को विश्व शक्ति समझने लगे हैं। जैसे ही एक चुनौती आई व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी में बातें घूमने लगी कि अमरीका और जर्मनी मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।

हमने डाक्टरों के सम्मान में सामूहिकता का प्रदर्शन तो किया लेकिन कई जगहों पर इस प्रदर्शन में शामिल लोग ही इस प्रयास को नौटंकी साबित कर रहे हैं। मकानमालिक नर्स या डाक्टर को घऱ से निकाल रहे हैं। कोरोना के इलाज में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के साथ अनेक तरह के भेदभाव हो रहे हैं।

बेशक जनता के बड़े हिस्से ने तालाबंदी का ठीक पालन किया लेकिन उसी वक्त हम इसका पालन नहीं भी कर रहे थे। मंडियों में भीड़ थी। बैंकों के बाहर भीड़ थी। लाखों मज़दूर एक साथ थे। जब तब लोग सामान भरने के लिए बाज़ार में भीड़ कर दे रहे हैं। नतीजा यह हो रहा है कि जिस हिस्से ने तालाबंदी का पालन कर खतरे को कम किया है, दूसरे हिस्से ने बड़ा कर दिया है।

मेडिकल तैयारियों के अलावा आप सामाजिक सुरक्षा के आधार पर भी मूल्यांकन करें।

ज़रूर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने ग़रीब लोगों की मदद के लिए बड़ी राशि ख़र्च की है। हिसाब में हेरफेर के आंकड़ों के बाद भी दुनिया के कई देशों की तुलना में काफी कम है। सुनने में दो लाख करोड़ लगता है लेकिन लोगों के हाथ में तो पांच सौ हज़ार ही है। भारत के नेक दिल इंसान और जीवट सामाजिक संगठनों ने सरकार से बड़ा कार्यक्रम चलाया हुआ है। इनकी मदद से ही इस वक्त स्थिति संभली है लेकिन क्या लोग लंबे समय तक इसका खर्च उठा पाएंगे? चंदा तो तभी देगा जब लोगों के पास भी आएगा। व्यापार बंद होने, नौकरी जाने और सैलरी कम होने का असर इन नेक कार्यों पर भी पड़ने लगेगा। अभी से ही पड़ने लगा है।

तालाबंदी ही एकमात्र रास्ता बचा है। इस वक्त सही रास्ता है क्योंकि बाकी चीज़ों को सही करना मुश्किल हो रहा है। उसकी रफ्तार बहुत धीमी है। तालाबंदी तैयारी का मौका दे रही है तो नाकामियों पर पर्दा भी डाल रही है। आप कह सकते हैं कि तालाबंदी एक अच्छा पर्दा है। हमारे पास यही रास्ता बचा है। इसके कारण संक्रमण की रफ्तार कम होती नज़र आई है।

बेहतर है कि हम सभी शारीरिक दूरी बनाए रखें। छह फीट की दूरी ही हमें अस्पताल से बचा सकती है। जिस देश में डाक्टरों को अभी तक पर्याप्त सुरक्षा उपकरण न पहुंचे हों वहां आप सिर्फ तालाबंदी और अपने पर ही भरोसा कर सकते हैं। कई लोग लापरवाह हो जा रहे हैं। स्वाभाविक है। मगर यही प्रयास कीजिए कि तालाबंदी का सख्ती से पालन कीजिए।

24 मार्च को तालाबंदी हुई तो राज्यों को पता नहीं था। 22 मार्च को राजस्थान में तालाबंदी हो चुकी थी। अब राज्यों की तरफ़ से आवाज़ आ रही है। उनकी राय को भी आधार बनाया जा रहा है। राज्यों की मेडिकल तैयारी की हालत तो और ख़राब है। हो सकता है सरकार रेल हवाई यात्राओं में रियायत दे दे।

तमाम परिस्थियों को देख कर यही लगता है कि तालाबंदी जारी रहेगी। क्योंकि सरकारों के पास इसका तंत्र बेहतर है। उसे भी शायद पता है। उसके पास इस वक्त तालाबंदी ही एकमात्र सही हथियार है। बाकी हथियारों में जंग लगी है। इसलिए तालाबंदी से ही हमारी जंग जारी रहेगी। संक्रमण के लिहाज़ से देखें तो यह हथियार काम भी कर रहा है। हम सभी तालाबंदी के दौरान शारीरिक दूरी का सख्ती से पालन करते हुए सरकार का सहयोग करें। उसे और मौका दें ताकि अपनी तैयारी ठीक कर ले।

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